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थोड़ा और ध्यान करें, ताकि आप अपने बोध को और गहरा कर सकें, न कि बस यूं ही सीमा पर इधर-उधर घूमते रहें और सीमा शुल्क विभाग को देखते रहें। सीमा पर पुलिस, सीमा पर गश्त, और वह आपकी ओर देख रहा है और सोच रहा है, "क्या संत?" “कोई संत।” हर समय सीमा पर इधर-उधर घूमते हुए, आगे-पीछे घूमते हुए, वह यह तय नहीं कर पाता कि अंदर आऊं या घर वापस जाऊं या फिर से नरक में जाऊं। मुझे परवाह नहीं है। मैं आपको सीमा पार ले जाऊंगा और आप जो चाहो करो। मैं तो बस आपको तस्करी करके ले आती हूँ, यहां तक कि यह निःशुल्क भी है, और फिर आप जो चाहें, बाकी काम कर सकते हैं। […]Photo Caption: जो है वही अर्पित करो। शुद्ध प्रेम के साथ, छोटा उपहार भी बड़ा होता है