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कर्म कुछ मूर्त है: शिष्यों को मिलने में मास्टर की बाँधायें, 3 का भाग 2

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मैं सचमें चाहती हूं कि आप एक अच्छा समय बिताएं। […] मैं चाहती हूं कि आप सी (झील) का आनंद लें यहाँ थोड़ा इधर-उधर। यहीं नहीं बैठो। क्योंकि आप भी हर रोज़ काम करते हैं। मुझे सी (झील) के पास रहना पसंद है ताकि आप तैराकी का थोड़ा आनंद ले सकें। बहुत गरमी हो गयी है। हे भगवान। आप जानते हैं, यूरोप में अन्य स्थानों पर गड़गड़ाहट, रेगेन (बारिश), वर्षा, हो रही है बिजली (बिजली), अंधेरा आसमान, हवाई अड्डा बंद। और यहाँ आप बैठे हैं और पसीना बहा रहे हैं। पहले ही बाहर से पसीना आ रहा है। मैं यहां आने के लिए टैक्सी में बैठी थी और उसमें एयरकंडीशनर नहीं था। […] उसने कहा, ''हमें यहां इसकी जरूरत नहीं है। हम ऑस्ट्रिया में हैं।” […]

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